प्रश्न 9 निम्नलिखित श्लोकों में से किन्हीं दो की व्याख्या कीजिएl

i) एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते
ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः ॥

ii) यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः । हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः ॥

iii) क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम् ।
अव्यक्ता हि गतिर्दुःखं देहव‌द्भिरवाप्यते ॥

i) इस श्लोक में कहा गया है कि जो भक्त सदैव आपको पूजते हैं, वे अव्यक्त अक्षर भी जानते हैं। उन्हें योग का विद्वान होने का श्रेय प्राप्त होता है। इसका अर्थ है कि जो भक्त सदैव आपके ध्यान में लगे रहते हैं वे आपके अव्यक्त स्वरूप को भी जानते हैं। इसलिए वे योगवित्तम होते हैं।

ii) इस श्लोक में कहा गया है कि जो व्यक्ति जो न किसी से घृणा करता है, न भय करता है, न हर्ष करता है और न शोक में उलझता है, वह आपकी प्रिय होता है। इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति सभी के साथ शांत और समग्रता रखता है, वह आपके प्रिय होता है।

iii) इस श्लोक में कहा गया है कि जिन लोगों का मन अव्यक्तता में अटका रहता है, उन्हें अधिक कष्ट होता है। क्योंकि अव्यक्तता दुःख की गति होती है। उन्हें शारीरिक रूप से दुःख तो महसूस नहीं होता, लेकिन मानसिक रूप से वे कष्ट सहने में असमर्थ हो जाते हैं।

i) इस श्लोक में भक्तों के बारे में व्याख्या की जाती है। श्लोक कहता है कि जो भक्त तुम पर निरंतर ध्यान करते हैं, वे अक्षर रहित परब्रह्म को भी जानते हैं। वे उत्कृष्ट योगियों में सबसे श्रेष्ठ होते हैं।

ii) इस श्लोक में निर्वाण मय पुरुष के बारे में व्याख्या की जाती है। श्लोक कहता है कि जो पुरुष इस से रहित होता है, वह न केवल दूसरों को मोहित नहीं करता है, बल्क वह मेरे बहुत प्रिय होता है जिसे सुख, दुःख, भय और उद्वेग से मुक्त हुआ है।

iii) इस श्लोक में भक्ति योग के बारे में व्याख्या की जाती है। श्लोक कहता है कि सकाम और सक्त मन वाले भक्तों का क्लेश अधिक होता है। इसलिए दुख उन शरीरियों की तरह वहाँ प्राप्त होता है, जो अविद्या से घिरी होती हैं। अव्यक्त ही उनकी मुक्ति का मार्ग होती है।

i) श्लोक i का व्याख्यान:

इस श्लोक में कहा गया है कि वह भक्त जो निरंतर आपकी उपासना करते हैं और वह जो अक्षररहित एवं अव्यक्त परमात्मा के प्रति भक्ति रखते हैं, वे भक्त योग में सर्वश्रेष्ठ हैं।

श्लोक ii का व्याख्यान:
यहां कहा गया है कि वह पुरुष जो न किसी से घृणा करता है और जिसका कोई भी घृणासूचक तत्व उसपर प्रभाव नहीं डालता है, संतोष, अथाह आनंद, भय या चिंता के आवेगों से मुक्त होता है, वह पुरुष मेरे लिए प्रिय है।

श्लोक iii का व्याख्यान:
यहां कहा गया है कि जो मनुष्य अव्यक्तपन में अत्याधिक आसक्त होते हैं और उनका मन दुःखों से अव्यक्त शरीर में प्राप्त होने वाले क्लेशों में और अवस्थाओं में गतिसीमा प्राप्त करता है, वे ये क्लेशों के अत्याधिक पीड़ा द्वारा चिंतित हो जाते हैं।